गुरुवार, 13 अप्रैल 2017

योगी जी उ.प्र. की सारी योजना बन्द करा दो बस,फिर सब ठीक हो जायेगा

समाजवादी पेन्शन रोक दीजे, साईकिल ट्रैक तुड़वा दीजिए, लखनऊ - आगरा एक्सप्रेस-वे बंद करा दीजिए । लखनऊ इन्टरनेशनल स्टेडियम गिरवा दीजिये, लखनऊ मेट्रो भी रूकवा दीजिए, गोरखपुर एम्स की जमीन वापस ले लीजिये, लोहिया आवास गिरा दीजिये, कन्या विद्याधन वापस करवा दीजिये , लैपटाप फिकवा दिजिये, जिलो मे खुले मिनी ट्रामा सेन्टर बन्द करा दीजिये, शादी अनुदान योजना समाप्त करिये, 108 एम्बुलेंस सेवा रोक दीजिये, डायल 100 पुलिस सेवा बन्द करिये, 1090 महिला हेल्पलाइन भी खत्म करिये , जहा आप बैठते हैं लोकभवन मे वह भी अखिलेश यादव ने बनवाया है वह भी तुड़वा दीजिये । तब कही जाकर आप कह पायेंगे सर की यूपी मे कोई काम नही हुआ वर्ना जितनी योजना आप बन्द करेगें उतना ही पता चल रहा है कि ये योजना तो सपा सरकार की थी

बुधवार, 12 अप्रैल 2017

भाजापा की काली करतूत देखें जो खुद को सबका हमदर्द बना है। अब जागो देश और आंखे खोलो(विनय यादव )

अटल पेंशन, दीन दयाल उपाध्याय योजना सही, तो फिर समाजवादी पेंशन गलत कैसे                                                            फर् यूपी में भाजपा की नई सरकार बनने के बाद समाजवादी शब्द को हर बैनर पोस्टर और सरकारी योजनाओं से हटाने का काम तेजी से शुरू हो गया है। एम्बुलेंस, आवास और कई अन्य योजनाओं के साथ ही अब समाजवादी पेंशन योजना से भी समाजवादी शब्द हटेगा। इस योजना का नाम मुख्यमंत्री पेंशन योजना या बाद में दीन दयाल उपाध्याय पेंशन योजना हो सकती है। हालांकि सबसे बड़ा सवाल ये है कि जब अटल पेंशन योजना, दीन दयाल उपाध्याय अंत्योदय योजना, राजीव गांधी आवास योजना समेत सैकड़ों योजनाएं बड़ी ही आसानी से चल सकती हैं तो फिर समाजवादी शब्द से इतनी नफरत क्यों है। जबकि समाजवादी शब्द का मतलब सेक्यूलर से है। भाजपा के कई नेता समाजवादी रहे हैं। सूबे में भाजपा की सरकार बनने के बाद अब सरकारी योजनाओं से समाजवादी शब्द हटाया जाएगा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गुरुवार देर रात चली बैठक में यह निर्देश दिए। वहीं मुख्यमंत्री ने नई परंपरा की शुरुआत करते हुए योजनाओं के नाम के आगे केवल ‘मुख्यमंत्री’ शब्द लिखने के निर्देश दिए हैं, साथ ही केंद्रीय योजनाओं के नाम में किसी तरह का कोई फेरबदल नहीं करने और उसे केंद्र की मंशा के मुताबिक ही चलाने के निर्देश दिए हैं। गुरुवार देर रात खादी एवं ग्रामोद्योग विभाग की समीक्षा बैठक के दौरान मुख्यमंत्री ने इस मामले को कैबिनेट के सामने पेश करने को कहा ताकि इसकी समीक्षा की जा सके। कई योजनाएं आएंगी दायरे में मुख्यमंत्री के इस निर्देश के बाद पूर्ववर्ती सपा सरकार के कार्यकाल में शुरू की गयी कई योजनाओं के नाम बदल जाएंगे। समाजवादी पेंशन योजना अब मुख्यमंत्री पेंशन योजना के नाम से जानी जाएगी। इसी तरह समाजवादी एंबुलेंस (108), समाजवादी पूर्वाचल एक्सप्रेस- वे, समाजवादी नमक, समाजवादी किसान एवं सर्वहित बीमा योजना, समाजवादी आवास योजना, समाजवादी युवा स्वरोजगार योजना, समाजवादी पौष्टिक आहार योजना आदि मुख्य है। ध्यान रहे कि चुनाव के दौरान भाजपा ने सरकारी योजनाओं में समाजवादी शब्द हटाने की मांग की थी जिसके बाद चुनाव आयोग ने एंबुलेंस से इसे हटाने के निर्देश भी दिए थे। वहीं सरकार बनने के बाद से तमाम योजनाओं से समाजवादी शब्द हटाए जाने की मांग भाजपा नेताओं द्वारा लगातार की जा रही थी। विकास पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष वीरेंद्र कुमार मौर्या कहते हैं कि अखिलेश यादव ने भी जो कांशीराम की योजना थी उसे बदला था। कांशीराम स्मृति उद्यान मायावती ने मुख्यमंत्री रहते हुए बनवाया था। उसमें केवल जनेश्वर मिश्रा की मूर्ति लगवाई और योजना का नाम बदल दिया। कांशीराम उर्दू फारसी विश्वविद्यालय का नाम बदल दिया था। इसका ख्वाजा मोइनुद्दीन चिस्ती रखा दिया। किसी भी पूर्ववर्ती सरकार द्वारा यदि कोई योजना चलाई जाती है। तो आने वाली सरकार को उसे आगे बढ़ाने का काम करना चाहिए। योजना बंद हो जाए तो दूसरी बात है। जहां का नामकरण न हुआ हो वहां तो किसी भी महापुरुष का नाम रख दिया जाए तो ठीक है, लेकिन इस तरह की परिपाटी ठीक नहीं।                      ं                                                                           ं                                       लेखक-                          -                       (विनय यादव जजवारा ,फैजाबाद)

शनिवार, 8 अप्रैल 2017

झूठ की विजय ही भारत का नया लोकतंत्र--विनय यादव

यह भारत का नया लोकतंत्र है। यह भारत की वह जनता है जिसका किसी को वोट देने का पैमाना अब उसके कार्य का आकलन नहीं बल्कि एक धर्म के लोगों से चिढ़ है। यह भारत की नयी व्यवस्था है जहाँ 16 साल अपने लोगों के लिए अनशन कर चुकी इरोम शर्मिला उन्हीं अपने लोगों से मात्र 90 वोट पाती हैं। अर्थात इस कलयुग में जनता के लिए संघर्ष की कोई कीमत नहीं। चुनाव युद्ध है जहाँ सत्यवादी युधिष्ठिर का सच नहीं कौरवों का झूठ छल और मक्कारी जीतती है। यह भारत की नयी व्यवस्था है जहाँ चुनावी वादों को "जुमला" और "चुनाव में यह बोला ही जाता है" कह कर एक राष्ट्रीय अध्यक्ष और प्रधानमंत्री खुद झूठा घोषित कर देता है फिर भी जनता उन्हें समर्थन पर समर्थन देती चली जाती है। यह भारत की नयी व्यवस्था है जहाँ सबसे बड़ी पार्टी गोवा और मणिपुर में तमाशा देखती है और उससे बहुत कम जनाधार वाली पार्टी सारी परम्पराओं को तोड़कर सरकार बना लेती है। यह भारत का नया युग है जहाँ सबसे अधिक वोट पाकर भी लोग नैतिक रूप से हार जाते हैं और हारी इरोम शर्मिला के 90 वोट देश को हिला देते हैं। विजय तो इरोम शर्मिला ने प्राप्त की है कि उनका यह 90 वोट देश को कचोट रहा है। यह नया भारत है जहाँ "सत्यमेव जयते" पर "झूठमेव जयते" विजय प्राप्त कर लेता है।

सोमवार, 3 अप्रैल 2017

""जीवन का मूल मन्त्र"" (विनय यादव)

हर इंसान के लिए जीवन में शांति सर्वोपरि है. शांति के बिना इन्सान कोई सिद्धि (Achievement) हासिल नहीं कर सकता है. परन्तु आज की भागमभाग में शांति के आधारभूत तत्वों को ही भूलते जा रहे हैं. इस समस्या का मूल हल बताती यह Heart touching कहानी प्रस्तुत है : एक दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर अपने सामने टेबल पर कुछ वस्तुओं के साथ अपनी कक्षा के आगे खड़े थे. बिना कुछ बोले अपनी कक्षा शुरू की, उन्होंने एक बहुत बड़े जार को उठाया और उसमें 2 इंच व्यास की Rocks से भरना शुरू कर दिया. जार भर गया, तब Students से पुछा क्या जार भरा हुआ है. सभी Students सहमत हुए. तब प्रोफसर साहब ने कंकड़ (Pebbles) का डिब्बा उठाया और जार में उड़ेल दिया. उन्होनें जार को हिलाकर रख दिया. जाहिर है Pebbles; Rocks के बीच खाली जगह में घुसने ही थे. जब जार भर गया, Students से पुछा क्या जार भरा हुआ है. सभी Students सहमत हुए. प्रोफसर साहब ने रेत (Sand) का डिब्बा उठाया और जार में उड़ेल दिया. जाहिर है रेत से जार में सब कुछ फुल भर गया. जार भर गया तब उन्होंने एक बार फिर Students से पुछा क्या जार भरा हुआ है. सभी Students ने सर्वाम्मति सहमति जवाब दिया “हाँ”. “अब” प्रोफसर साहब ने कहा, “मुझे लगता है कि यह जार आपके जीवन का प्रतिनिधित्व करता है. सबसे महत्वपूर्ण चीजें Rocks हैं – आपका परिवार, आपके पैरेन्टस्, आपका partner, आपका स्वास्थ्य, आपके बच्चे – अगर बाकी सब चीजें खो जाती है और केवल ये बच जाती है, तब भी आपका जीवन फुल रहेगा. Pebbles कुछ महत्व की दूसरी चीजें हैं – जैसे आपका job, आपका घर, आपकी कार आदि. बाकी सब कुछ रेत है. छोटी चीजें (small stuff) हैं.“ “यदि आप जार में सबसे पहले रेत डालोगे” उनहोंने जारी रखा “तो उसमें Rocks, pebbles के लिये कोई जगह खाली नहीं रहेगी. बिल्कुल ऐसा ही आपके जीवन में चलता है. अगर आप अपना सारा समय और ऊर्जा small stuff पर खर्च कर दोगे तो आपके पास महत्पूर्ण चीजों के लिए समय कभी नहीं होगा. अपनी खुशी के लिए अपनी अत्यंत महत्पूर्ण चीजों (Rocks) पर ध्यान दें. जिन्दगी के आधार ये ही हैं. अपने बच्चों के साथ खेलें, अपने पैरेन्टस् की सेवा करें, अपने partner साथ नाचें-गायें बाहर घूमने जायें, अपने सवास्थ्य पर ध्यान दें. आप हमेशा उसके बाद job पर जाने, घर को साफ रखने, डिनर पार्टी देने तथा अन्य कार्यों का निस्तारण तय करें. पहले अपनी Rocks का ख्याल रखें – जो वास्तव में महत्वपूर्ण चीजें हैं. अपनी प्राथमिकताएं निर्धारित करें. बाकी तो बस रेत है.”                   ंं                                                                           ं        
            ( विनय  यादव  की कलम से)

शनिवार, 1 अप्रैल 2017

जीवन के *20* साल हवा की तरह उड़ गए । फिर शुरू हुई *नोकरी* की खोज । ये नहीं वो , दूर नहीं पास । ऐसा करते करते *2 .. 3* नोकरियाँ छोड़ने एक तय हुई। थोड़ी स्थिरता की शुरुआत हुई। फिर हाथ आया पहली तनख्वाह का *चेक*। वह *बैंक* में जमा हुआ और शुरू हुआ अकाउंट में जमा होने वाले *शून्यों* का अंतहीन खेल। *2- 3* वर्ष और निकल गए। बैंक में थोड़े और *शून्य* बढ़ गए। उम्र *27* हो गयी। और फिर *विवाह* हो गया। जीवन की *राम कहानी* शुरू हो गयी। शुरू के *2 .. 4* साल नर्म , गुलाबी, रसीले , सपनीले गुजरे । हाथो में हाथ डालकर घूमना फिरना, रंग बिरंगे सपने। *पर ये दिन जल्दी ही उड़ गए*। और फिर *बच्चे* के आने ही आहट हुई। वर्ष भर में *पालना* झूलने लगा। अब सारा ध्यान बच्चे पर केन्द्रित हो गया। उठना - बैठना, खाना - पीना, लाड - दुलार । समय कैसे फटाफट निकल गया, पता ही नहीं चला। *इस बीच कब मेरा हाथ उसके हाथ से निकल गया, बाते- करना घूमना - फिरना कब बंद हो गया दोनों को पता ही न चला*। *बच्चा* बड़ा होता गया। वो *बच्चे* में व्यस्त हो गयी, मैं अपने *काम* में । घर और गाडी की *क़िस्त*, बच्चे की जिम्मेदारी, शिक्षा और भविष्य की सुविधा और साथ ही बैंक में *शुन्य* बढाने की चिंता। उसने भी अपने आप काम में पूरी तरह झोंक दिया और मेने भी.... इतने में मैं *37* का हो गया। घर, गाडी, बैंक में *शुन्य*, परिवार सब है फिर भी कुछ कमी है ? पर वो है क्या समझ नहीं आया। उसकी चिड चिड बढती गयी, मैं उदासीन होने लगा। इस बीच दिन बीतते गए। समय गुजरता गया। बच्चा बड़ा होता गया। उसका खुद का संसार तैयार होता गया। कब *10वि* *anniversary*आई और चली गयी पता ही नहीं चला। तब तक दोनों ही *40 42* के हो गए। बैंक में *शुन्य* बढ़ता ही गया। एक नितांत एकांत क्षण में मुझे वो *गुजरे* दिन याद आये और मौका देख कर उस से कहा " अरे जरा यहाँ आओ, पास बैठो। चलो हाथ में हाथ डालकर कही घूम के आते हैं।" उसने अजीब नजरो से मुझे देखा और कहा कि " *तुम्हे कुछ भी सूझता* *है यहाँ ढेर सारा काम पड़ा है तुम्हे* *बातो की सूझ रही है*।" कमर में पल्लू खोंस वो निकल गयी। तो फिर आया *पैंतालिसवा* साल, आँखों पर चश्मा लग गया, बाल काला रंग छोड़ने लगे, दिमाग में कुछ उलझने शुरू हो गयी। बेटा उधर कॉलेज में था, इधर बैंक में *शुन्य* बढ़ रहे थे। देखते ही देखते उसका *कॉलेज* ख़त्म। वह अपने पैरो पे खड़ा हो गया। उसके पंख फूटे और उड़ गया *परदेश*। उसके *बालो का काला* रंग भी उड़ने लगा। कभी कभी दिमाग साथ छोड़ने लगा। उसे *चश्मा* भी लग गया। मैं खुद *बुढा* हो गया। वो भी *उमरदराज* लगने लगी। दोनों *55* से *60* की और बढ़ने लगे। बैंक के *शून्यों* की कोई खबर नहीं। बाहर आने जाने के कार्यक्रम बंद होने लगे। अब तो *गोली दवाइयों* के दिन और समय निश्चित होने लगे। *बच्चे* बड़े होंगे तब हम *साथ* रहेंगे सोच कर लिया गया घर अब बोझ लगने लगा। *बच्चे* कब *वापिस* आयेंगे यही सोचते सोचते बाकी के दिन गुजरने लगे। एक दिन यूँ ही सोफे पे बेठा ठंडी हवा का आनंद ले रहा था। वो दिया बाती कर रही थी। तभी *फोन* की घंटी बजी। लपक के *फोन* उठाया। *दूसरी तरफ बेटा था*। जिसने कहा कि उसने *शादी* कर ली और अब *परदेश* में ही रहेगा। उसने ये भी कहा कि पिताजी आपके बैंक के *शून्यों* को किसी *वृद्धाश्रम* में दे देना। और *आप भी वही रह लेना*। कुछ और ओपचारिक बाते कह कर बेटे ने फोन रख दिया। मैं पुन: सोफे पर आकर बेठ गया। उसकी भी पूजा ख़त्म होने को आई थी। मैंने उसे आवाज दी *"चलो आज फिर हाथो में हाथ लेके बात करते हैं*" *वो तुरंत बोली " अभी आई"।* मुझे विश्वास नहीं हुआ। *चेहरा ख़ुशी से चमक उठा*। आँखे भर आई। आँखों से आंसू गिरने लगे और गाल भीग गए । अचानक आँखों की *चमक फीकी* पड़ गयी और मैं *निस्तेज* हो गया। हमेशा के लिए !! उसने शेष पूजा की और मेरे पास आके बैठ गयी " *बोलो क्या बोल रहे थे*?" लेकिन मेने कुछ नहीं कहा। उसने मेरे शरीर को छू कर देखा। शरीर बिलकुल *ठंडा* पड गया था। मैं उसकी और एकटक देख रहा था। क्षण भर को वो शून्य हो गयी। " *क्या करू*? " उसे कुछ समझ में नहीं आया। लेकिन *एक दो* मिनट में ही वो चेतन्य हो गयी। धीरे से उठी पूजा घर में गयी। एक अगरबत्ती की। *इश्वर को प्रणाम किया*। और फिर से आके सोफे पे बैठ गयी। मेरा *ठंडा हाथ* अपने हाथो में लिया और बोली " *चलो कहाँ घुमने चलना है तुम्हे* ? *क्या बातें करनी हैं तुम्हे*?" *बोलो* !! ऐसा कहते हुए उसकी आँखे भर आई !!...... वो एकटक मुझे देखती रही। *आँखों से अश्रु धारा बह निकली*। मेरा सर उसके कंधो पर गिर गया। ठंडी हवा का झोंका अब भी चल रहा था। *क्या ये ही जिन्दगी है ? ?* सब अपना नसीब साथ लेके आते हैं इसलिए कुछ समय अपने लिए भी निकालो । जीवन अपना है तो जीने के तरीके भी अपने रखो। शुरुआत आज से करो। क्यूंकि कल कभी नहीं आएगा।